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Wednesday, October 29, 2014

गर्भावस्था के दस लक्षण

पीरियड्स में चूक
गर्भावस्था के लक्षणों में से सबसे आम लक्षण चूक अवधि का है। गर्भावस्था के सभी लक्षणों के अलावा, पीरिड्स का ना आना सबसे आसान उपाय है। पीरियड्स का न आना प्रसव उम्र की महिलाओं में गर्भावस्था का पक्का संकेत है।

मार्निग सिक्नेस
मार्निग सिक्नेस गर्भाधान के बाद तीन सप्ताह के अन्दर शुरू हो जाती है। यह पूरी पहली तिमाही में रहती है। एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन के बढ़ता स्तर पेट को धीरे धीरे खाली करता है। भोजन का इस धीमी गति से पारित होने के कारण महिलाओं को उल्टी जैसी समस्या होती है। यह उल्टी या मतली जैसी फिलिंग सुबह के समय होती है इसलिए इसे आमतौर पर सुबह में नाम 'मार्निग सिक्नेस' के नाम से जानते हैं।

खाने के प्रति संवेदनशीलता
गर्भवती महिलाओं में चटकदार एवं खट्टे पदार्थ खाने की इच्छा बहुत बढ़ जाती है। आचार या आइस क्रीम जैसे खाद्य पदार्थ देखते ही वे मचल जाती हैं। सा‍थ ही साथ ऐसे बहुत से खाद्य पदार्थ होते है जिनकी गंध उन्हें अच्छी नही लगती। यह आपके सिस्टम में एस्ट्रोजन की मात्रा में वृद्धि के कारण होता हैं।

यूरीन बार-बार आना
गर्भधारण करने के कुछ हफ्तों के बाद बढ़ता हुआ गर्भाशय, मूत्राशय पर दबाव डालता है। जिससे बार-बार यूरीन जाना पड़ता हैं। इससे निजात पाने के लिए तरल पदार्थों का सेवन कम न करें बल्कि कैफीन की मात्रा कम कर दें। पेशाब की फिलिंग होने पर इसे रोकें नही।

सिर और पीठ दर्द
अगर आपको सिर दर्द और पीठ दर्द का सामना करना पड़ रहा हैं। और यह दर्द हल्के से तेज, बहुत तेज और लगातार बना रहता है, तो यह भी गर्भावस्था का एक लक्षण हो सकता है। यह दर्द गर्भावस्थात में एस्ट्रोजन हार्मोन के स्तर के बढ़ने के कारण होता है।

बढ़ा हुआ पेट
गर्भावस्था के प्रारंभिक दिनों में अधिकांश गर्भवती महिलाओं का पेट बढा़ हुआ नही होता है परन्तु कुछ महिलाओं में बढ़ा हुआ पेट सूजन के कारण होता है और जो आमतौर पर गर्भावस्था का लक्षण हो सकता हैं।

थकान
हार्मोन प्रोजेस्टेरोन के स्तर में वृद्धि के कारण ज्यादातर महिलाओं को गर्भावस्था में अत्यधिक थकान महसूस होने लगती हैं। गर्भावस्था के दौरान आपको थकान होने लगती है और आपका मन आराम करने को करता है। ऐसे में आराम कर लेना बेहतर होता है।

सुबह कमजोरी का एहसास
सुबह-सुबह आपको उल्टीर और कमजोरी का एहसास प्रेग्नेंमट होने के दूसरे सप्ता्ह में हो सकता है। लेकिन पहले यह निश्चित कर लीजिए कि ऐसा किसी बीमारी जैसे - पेट की समस्याह, बुखार, फूड प्वॉनइजनिंग आदि के कारण तो नही हो रहा है।

असामान्य मासिक स्राव
मासिक धर्म में कुछ असामान्य बात गर्भधारण का संकेत हो सकती है। इस तरह का रक्त स्राव कभी भी हो सकता है (जो आपने सोचा न हो) और सामान्य मासिक धर्म की तरह नहीं बल्कि उससे अलग किस्म का हो सकता है।

पॉजिटिव होम प्रेग्नेंसी टेस्ट
अगर आप अच्छी खबर की उम्मीद कर रही हैं, तो घर में ही प्रेग्नेंसी टेस्ट करके देख लें। यह गर्भवती होने का पक्का लक्षण है।

गर्भाशय में ऐठन
आमतौर पर जब महिलाओं को गर्भाशय में ऐठन का अनुभव हो तो ऐसा समझा जाता है आपका गर्भाशय बढ़ रहा है। इस तरह की पीड़ा सामान्य समझी जाती है और इसे स्वस्थ गर्भावस्था की निशानी भी समझा जाता है।

स्‍तनों में बदलाव
प्रेगनेंट होने के बाद स्‍तनों में बदलाव होने लगता है। स्‍तनों में खून की आपूर्ति ज्‍यादा होने लगती है, इसके कारण स्‍तनों के आसपास झुनझुनी का एहसास हो सकता है। निप्‍पल के हिस्‍से काले होने लगते लगते हैं, इसे काला घेरा कहते हैं जो कि प्रेग्‍नेंसी के बाद गहरे हो जाते हैं।

9 महीनों की 9 दुविधाएँ

प्रेग्‍नेंसी और चुनौतियां
प्रेग्‍नेंट महिला के लिए हर रोज चुनौती वाला होता है। प्रेग्‍नेंट होने के बाद जेसे-जैस समय बीतता है उसी तरह महिला की दुविधायें बढ़ती जाती हैं। यह तब तक चलता है जब तक डिलीवरी न हो जाए। मां बनना अपने आप में एक बड़ी जिम्‍मेदारी है। आइए हम आपको बताते हैं कि हर महीने महिला को कितनी दुविधाओं का सामना करना पड़ता है।

पहला महीना
प्रेग्‍नेंसी टेस्‍ट किट से जांच के बाद अगर प्रेग्‍नेंसी निश्चित हो जाए तो महिला को खान-पान से लेकर दिनचर्या में बदलाव लाना पड़ता है। इस महीने से महिला को पीरियड्स आना बंद हो जाते हैं। ऐसे में भारी सामान उठाने से परहेज करें।

दूसरा महीना
इस महीने में त्‍वचा का रंग भी बदल जाता है। प्रेग्‍नेंसी के दूसरे महीने में भ्रूण के शरीर के कई अंगों का विकास होता है। इसी महीने बच्‍चे के सिर और पैर की स्थितियों का पता भी चलता है। इसलिए प्रोटीन और कैल्शियमयुक्‍त आहार ज्‍यादा खाना चाहिए।

तीसरा महीना
तीसरे महीने में भ्रूण की हड्डियों का विकास होना शुरू हो जाता है। बच्‍चे के कान और बाहरी अंगों का निर्माण होता है। इस समय बच्‍चे का सर शरीर का सबसे बड़ा भाग होता है। ऐसे में गर्भवती महिला को 15 से 20 मिनट तक धूप में रहना चाहिए।

चौथा महीना
चौथे महीने में शिशु के हार्मोन का निर्माण होने लगता है और बच्‍चा के शरीर से एमनियोटिक द्रव भी निकलने लगता है। इस समय बच्‍चे का वज़न लगभगग 85 ग्राम तक होता है। आप व्‍यायाम करती हैं तो जिम ट्रेनर के निर्देशन में व्‍यायाम करें।

पांचवा महीना
पांचवे महीने में बच्‍चे की लंबाई तेजी से बढ़ती है। इस दौरान बच्‍चे की लंबाई लगभग 25 सेंटीमीटर होती है। इस समय फीटल किक का भी एहसास होने लगता है। इस महीने बच्‍चे के हाथों और पैरों के पैड और उंगलियों का विकास होता है।

छठा महीना
इस महीने से खास ध्‍यान देने की जरूरत होती है। इस मंथ प्रीमैच्‍योर डिलीवरी होने की संभावना होती है। इस समय बच्‍चे के शरीर में ब्राउन वसा बननी शुरू हो जाती है, जिससे बच्‍चे के शरीर का ताप नियंत्रित रहता है। इस समय बच्‍चे की आंखों का विकास हो जाता है।

सातवां महीना
इस मंथ फीटल किक ज्‍यादा महसूस होता है। इसके कारण प्रेग्‍नेंट महिला के सोने का समय प्रभावित हो सकता है। आपको होने वाला शिशु आपके पाचन तंत्र को और आपकी सांसों की गति को महसूस कर सकता है। कुछ बच्‍चे इस समय भी पैदा हो जाते हैं, लेकिन उन्‍हें विशेष देखभाल की आवश्‍यकता होती है।

आठवां महीना
आपका शिशु, अब किसी भी समय इस नई दुनिया में प्रवेश कर सकता है,लेकिन वो जितना समय आपके गर्भ में बिताएगा, बच्‍चे के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए यह उतना ही अच्‍छा रहेगा। अब बच्‍चे का पूरा विकास हो चुका है। आपका इस समय ज्‍यादा मूव नही कर सकती हैं इसलिए एक जगह बैठे-बैठे बोरियत महसूस होती है।

नौवां महीना
चि‍कित्‍सक ने शायद आपको प्रसव का दिन बता दिया हो। आपका शिशु कभी भी इस दुनिया में कदम रख सकता है। यह खुशी के साथ ही खतरों का भी समय है। बच्‍चे का वज़न अब 7 पाउंड तक हो सकता है। नौवें महीने में हर रोज आप चिकित्‍सक के संपर्क में रहिए। ज्‍यादा से ज्‍यादा आराम कीजिए।

Saturday, October 25, 2014

गर्भावस्था की पहली तिमाही में कुछ विशेष बातों का रखें ध्यान

  • पहली तिमाही में भ्रूण के कुछ अंगों का हो जाता है विकास।
  • मतली, मॉर्निंग सिकनेस, थकान जैसी समस्‍या हो सकती है।
  • डायट में अतिरिक्‍त विटामिन और प्रोटीन को शामिल कीजिए।
  • नियमित व्‍यायाम से तनाव और अनिद्रा की समस्‍या नहीं होती।
गर्भावस्‍था को तीन तिमाही में बांटा जाता है- पहली, दूसरी और तीसरी। गर्भधारण के बाद से लेकर पहले तीन महीने बच्‍चे के लिए बहुत जरूरी होते हैं। क्‍योंकि इन 12 सप्‍ताह में शिशु पूर्ण रूप से बन जाता है। भ्रूण के हाथ, पैर व शरीर के अंगों को देखा जा सकता है। पहली तिमाही में में गर्भ अत्यंत संवेदनशील रहता है और उसको दवाइयों, जर्मन मीजल्स, रेडिएशन, तंबाकू, रासायनिक एवं जहरीले पदार्थों के संपर्क में आने से नुकसान हो सकता है।

पहली तिमाही महिला में कुछ परिवर्तन भी होते हैं। महिला की स्तन ग्रंथि विकसित होती है, गर्भाशय का भार मूत्राशय पर आने से बार-बार पेशाब लगती है, हार्मोन में बदलाव होता है जिसके कारण महिला का मूड भी बदलता है। सुबह-सुबह सुस्ती व अरुचि और कई बार उल्टी करने की इच्छा भी होती है। इस दौरान कब्ज भी हो सकती है, क्योंकि बढ़ता हुआ गर्भाशय अंतड़ियों पर दबाव डालता है। आइए हम आपको बताते हैं इस दौरान किन-किन बातों का ध्‍यान रखना चाहिए।

गर्भावस्‍था की पहली तिमाही

कैसा हो आहार
गर्भधारण के बाद सबसे जरूरी है खान-पान पर ध्‍यान देना। मां और होने वाले बच्‍चे के बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य के लिए जरूरी है मां का आहार पौष्टिक होना चाहिए। क्‍योंकि इस दौरान भ्रूण का विकास तीव्र गति से होता है। महिला के शरीर का आकार और भार बढ़ जाने के कारण बीएमआर यानी बॉडी मेटाबॉलिक रेट बढ़ जाता है और पाचन क्रिया पर इसका असर पड़ता है।

गर्भवती महिला के शरीर के विषाक्‍त पदार्थों को निकालने के कारण गुर्दों का कार्यभार भी बढ़ जाता है| आईसीएमआर के पोषण दल के अनुसार गर्भावस्था में स्त्री को सामान्य से अधिक मात्रा में पोषक तत्व लेना चाहिए। भ्रूण के विकास के लिए प्रोटीन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए गर्भावस्था में प्रतिदिन 15 ग्राम अतिरक्त मात्रा में प्रोटीन लेना चाहिए। खाने में ताजे फल, बीन्स, भिन्डी, दलिया, अंडा, साबूत अनाज आदि अवश्‍य शामिल कीजिए।

नियमित व्‍यायाम करें
गर्भधारण करने के बाद अपनी दिनचर्या में व्‍यायाम को शामिल कीजिए। पहली तिमाही में महिला का वजन ज्‍यादा नहीं बढ़ता इसलिए आप इस दौरान सामान्‍य दिनों की तरह व्‍यायाम कर सकती हैं। नियमित व्‍यायाम करने से महिला को अनिद्रा के साथ तनाव से भी राहत मिलती है। इसलिए सुबह-सुबह कम से कम आधा घंटा व्‍यायाम कीजिए। जागिंग, तेज टहलना, स्‍वीमिंग आदि कर सकती हैं। लेकिन व्‍यायाम के दौरान ब्‍लड शुगर और ब्‍लड प्रेशर में बदलाव के कारण चक्‍कर और थकान की समस्‍या हो सकती है। ऐसी समस्‍या होने पर व्‍यायाम बंद कर देना चाहिए।

यदि थकान हो तो
गर्भधारण के बाद आप जो भी आहार लेती हैं उससे आपके शिशु को पोषण मिलता है जिसके कारण आप जल्‍दी थक जाती हैं। यह समस्‍या पहली तिमाही में सबसे ज्‍यादा होती है। थकान महसूस होने का मतलब खून में कमी भी हो सकता है। हो सके तो ज्‍यादा से ज्‍यादा आराम भी करें। ऐसी समस्‍या होने पर अपने चिकित्‍सक से संपर्क करें।

अन्‍य बातों का ध्‍यान रखें
इस दौरान महिला को नशे से दूर रहें, ज्‍यादा कैफीन के सेवन से परहेज करें, बाहर का जूस और खाना बिलकुल न खायें। अनपॉश्‍चराइज्‍ड दूध का भी सेवन न करें। पनीर, कच्‍चा मांस, मछली और अंडा खाने से बचना चाहिए, इसमें मौजूद बैक्‍टीरिया आपको अस्‍वस्‍थ कर सकते हैं। अधिक मात्रा में पानी पियें, कम से कम 8 से 10 ग्‍लास पानी का सेवन करें।

गर्भवस्‍था की पहली तिमाही में कई प्रकार की जटिलतायें आती हैं। मॉर्निंग सिकनेस, ब्‍लीडिंग, मतली, थकान आदि इस ट्राइमेस्‍टर में होने वाली समस्‍यायें हैं। यदि यह समस्‍या कई दिनों तक बनी रहे तो चिकित्‍सक से अवश्‍य सलाह लें।

Wednesday, August 27, 2014

प्रजनन क्षमता पर थायराइड का असर

  • थायराइड का गर्भावस्‍था पर पड़ता है असर।
  • इसके कारण बढ़ता है गर्भपात का खतरा।
  • थायराइड के कारण अनीमिया और संक्रमण की आशंका।
  • गर्भधारण से पहले थायराइड की जांच करवाना बेहतर।

अगर आप इस बात से चिंतित है कि थायरायड का आपकी प्रजनन क्षमता पर प्रभाव पड़ रहा है तो कंसिव करने से पहले थायराइड की समस्याओं को सुलझाना आपके लिए अत्‍यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। थायराइड ग्रंथि का प्रजनन में अहम किरदार होता है।

हार्मोनल असंतुलन थायराइड की समस्याओं के लिए एक ट्रिगर के रूप में कार्य कर सकते हैं। यह जानने से पहले कि थायराइड के कौन-कौन से ऐसे कारण्‍ा है जो आपकी प्रजनन क्षमता को प्रभावित करते है, हम सब से पहले थाइराइड के कार्यों के बारें में पता कर लेते है जो बहुत महत्वपूर्ण है। आइए जानें-

थायराइड गले में तितली के आकार की ग्रंथि है। आप में से कुछ लोगो को शायद यह पता भी नही होगा कि ऐसी कोई ग्रंथि भी होती है। लेकिन ऐसा है और अगर यह ठीक से काम नहीं करती तो आप गर्भ धारण करने के लिए और एक स्वस्थ गर्भावस्था के लिए सक्षम नहीं हो सकती है।

आपका थायरायड क्‍योंकि शरीर के कई हार्मोन को विनियमित करने के लिए जिम्मेदार है, इसलिए थाइराइड का अन्य शारीरिक कार्यों पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है। कुछ अधिक प्रभावित हार्मोनल कंडीशन जैसे मासिक धर्म चक्र में परिवर्तन, एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन के अस्थिर स्तर, रजोनिवृत्ति की शुरुआत, ब्रेस्‍ट फीड करने की क्षमता आदि शामिल हैं। हालांकि, थायराइड सबसे अधिक महिला की प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं, विशेष रूप से जब वह गर्भवती होने की कोशिश में है या उसकी गर्भावस्था की पूर्ण अवधि चल रही है।

प्रजनन क्षमता पर थायराइड का असर
आइए जानें थायराइड प्रजनन क्षमता को कैसे प्रभावित करता हैं। थायराइड आम तौर पर दो प्रकार (अन्‍डर एक्टिव थायराइड) हाइपोथायरायडिज्म और (ओवर एक्टिव थायराइड) हाइपरथायरायडिज्‍म का होता हैं। इन दोनो थायराइड में ही प्रजनन समस्याएं आती है।

हाइपोथायरायडिज्म
महिलाओं जिनको हाइपोथायरायडिज्म होता है उनको प्रजनन के सम्‍बन्‍ध में थोड़ी अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यह बहुत आवश्यक है कि जो महिलाएं गर्भवती बनने पर विचार कर रही है उनको सबसे पहले इस बीमारी के लिए उचित चिकित्सा उपचार लेना चाहिए। तीव्र हाइपोथायरायडिज्म के उपचार के अभाव में बच्‍चे के विकास में अनके प्रकार की समस्‍याएं आती है, जैसे- बच्‍चा में कम बुद्धि, बौनापन, बच्‍चों के अंगो का ठीक प्रकार से न बनाना आदि। स्‍टील बर्थ और गर्भपात की घटनाएं भी हाइपोथायरायडिज्म के इलाज के अभाव में महिलाओं के सा‍थ में बढ़ रही हैं।

जिन महिलाओं को हाइपरथायरायडिज्‍म होता है, उनको आमतौर पर प्रजनन सम्‍बन्‍धी कठिनाइयों का सामना कम करना पड़ता है। पर अक्सर उनका गर्भावस्‍था का समय अधिक कठिन होता है। हाइपोथायरायडिज्म की तरह हाइपरथायरायडिज्‍म में भी महिलाओं में गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, अगर उनके थायरायड की हालत कम मॉडरेट है (जो एक एंडोक्राइनोलॉजिस्ट द्वारा निर्धारित), तो वहां पर मां या बच्चे में से किसी को भी स्वास्थ्य जोखिम का थोड़ा ज्‍यादा खतरा रहता है। गंभीर हाइपरथायरायडिज्‍म होने पर महिलाओं में एनीमिया, उच्च रक्तचाप और संक्रमण होने की संभावना अधिक रहती है और साथ ही साथ बच्‍चों को भी कई परेशानियों से गुजराना पड़ता है।

ऐसा माना जाता है कि गर्भावस्था की पहली छमाही के दौरान भ्रूण का विकास केवल थायराइड हार्मोन के लिए मां पर निर्भर करता है, इसलिए यह जरूरी है कि जिन महिला को थायराइड की बीमारी हो उनको उचित उपचार करवाना चाहिए। साथ ही साथ जिन महिलाओं को लगता है उनको थायरायड की समस्या हो सकती है उनको भी तुरंत अपने डॉक्टर से इस विषय की चिंताओं के बारें में बात करके उचित जांच की पेशकश करनी चाहिए।


Tuesday, August 26, 2014

माहवारी पर पड़ता है रोजमर्रा की इन दस चीजों का असर

माहवारी पर असर
कई महिलाएं पीरियड्स में बदलाव जैसे भारी, हल्‍का या लगातार कम होने की समस्‍या से जूझ रही हैं। लेकिन शर्म या संकोच के कारण इस समस्‍या के बारे में किसी से बात नहीं करतीं। वैसे तो समय पर माहवारी न होना कोई भंयकर समस्‍या नहीं है, लेकिन कई प्रकार की स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी गंभीर समस्‍याओं का कारण बन सकती है। इसलिए इसके कारणों के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी है। और इसके कारण आपको अपनी रोजमर्रा में होने वाली चीजों में देखने को मिल जायेगा।

तनाव
तनाव का माहवारी के लिए जिम्‍मेदार हार्मोंन एस्‍ट्रोजन और प्रोजेस्‍टेरोन पर सीधा असर पड़ता है। जिससे रक्तस्त्राव में अनियमितता आती है और माहवारी चक्र अनियमित होने लगता है। इस समस्‍या को आप योग और ध्यान के माध्‍यम से कम कर सकती हैं।

अत्‍यधिक व्यायाम
अधिक एक्‍सरसाइज से हॉर्मोनल संतुलन में बदलाव आने लगता है। एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन आपकी मासिक धर्म प्रक्रिया को सामान्य रखता हैं और जरूरत से ज्यादा व्यायाम से एस्ट्रोजन की संख्या में वृद्घि होने से पीरियड्स में बदलाव आने लगता है।

खान-पान का असर
आपके आहार से भी माहवारी प्रभावित होती है। कई बार हम अपने आहार में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ा देते हैं, जिससे शरीर में हार्मोंन के स्‍तर में परिवर्तन आने लगता है। इसका असर आपकी माहवारी पर पड़ने लगता है और वह अनियमित हो जाती हैं।

ज्‍यादा शराब पीना
शराब सेवन और शराब पीने पर नेशनल इंस्टिट्यूट के अनुसार, शराब का अत्‍यधिक सेवन लीवर और अन्य अंगों को नुकसान पहुंचाकर, नियमित मासिक धर्म चक्र का कारण बनता है। शराब अस्थायी रूप से एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर में वृद्धि कर देता है, जिससे ओवुलेशन के लिए आवश्यक सामान्य हार्मोनल उतार चढ़ाव बाधित हो जाता है।

पीसीओएस
पीसीओएस(PCOS) ओवरी में सिस्‍ट और उसके कारण सही समय पर माहवारी का न आना पीसीओएस कहलाता है। हार्मोन में जरा सा भी बदलाव मासिक धर्म चक्र पर तुरंत असर डालता है। चेहरे पर बाल उग आना, मुंहासे होना, पिगमेंटेशन, अनियमित रूप से माहवारी आना, यौन इच्छा में अचानक कमी आ जाना, गर्भधारण में मुश्किल होना, आदि कुछ ऐसे लक्षण हैं। यह समस्‍या लगभग 10 प्रतिशत महिलाओं को प्रसव उम्र में प्रभावित करती है।

थायरॉयड
थायरॉयड के कारण भी मासिक धर्म असामान्‍य हो जाता है, इसके कारण पीरियड्स चक्र पर असर पड़ता है। ऐसे में खून की जांच करा लेना ठीक रहता है, जिससे असामान्य मासिक स्राव के सही कारण का पता चल जाता है।

बीमारियां और दवायें
कुछ बीमारियां और दवायें भी एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के लेवर पर असर डालती हैं। दवा ऑव्युलेशन की प्रक्रिया को भी प्रभावित करती हैं। अगर आपकी कोई बीमारी अनियमित माहवारी का कारण बनती है, तो आपको चिकित्‍सक की सलाह लेनी चाहिए।

थकान
थकान भी अनियमित माहवारी के लिए जिम्‍मेदार होता है। भोजन, पानी और आराम की कमी से मासिक धर्म चक्र प्रभावित होता है। इसलिए अनियमित माहवारी की समस्‍या से बचने के दिन भर की गतिविधियों में से अपने लिए पर्याप्‍त समय निकालें और भरपूर नींद लें।

संक्रमण
वैसे तो संक्रमण आपके मासिक चक्र और हार्मोंन के स्‍तर को प्रभावित नहीं करता है लेकिन यह ब्‍ल‍ीडिंग का कारण बनकर मासिक को सामान्‍य से अधिक बार ला सकता है। बैक्टीरियल संक्रमण, श्रोणि सूजन बीमारी, और यौन संचारित संक्रमण गर्भाशय के अंदर सूजन और खून को पैदा कर सकता है।

शिफ्ट कार्य
119,000 महिलाओं पर हुए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि जो महिलाएं रात और शाम की शिफ्ट में काम करती हैं, उनमें अनियमित और उतार चढ़ाव के रूप में मासिक धर्म की समस्याओं का खतरा अन्‍य महिलाओं की तुलना में लगभग 33 प्रतिशत अधिक होता है।

कैसे करें गर्भधारण

  • गर्भधारण करने में दिक्‍कत हो रही है तो पति-पत्‍नी दोनों को टेस्‍ट कराना चाहिए।
  • ओवूलेशन पीरियड को समझें, यह 12वें से 16वें दिन के बीच का हो सकता है।
  • पर्याप्त भोजन और फल खायें, विटामिन की सही मात्रा लें इससे प्रजनन दर बढती है।
  • धू्म्रपान, मादक पदार्थों का सेवन हार्मोन का संतुलन बगाड़ कर गर्भधारण में बाधा डालता है। 

मां बनने के लिए महिलाएं कई प्रकार के प्रयोग करती हैं, कुछ तो आसानी से मां बन जाती हैं लेकिन कुछ के लिए मां बनना एक सपना हो जाता है। गर्भधारण करने में अगर दिक्‍कत हो रही है तो पति-पत्‍नी दोनों को टेस्‍ट कराना चाहिए। नियमित चेकअप भी करवायें और संयम रखें।

कुछ महिलाओं को मां बनने में दिक्‍कत नहीं आती, जबकि कुछ को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

अगर आपको भी गर्भवती होने में किसी प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ रहा है, तो आप इन टिप्स पर ध्यान दे सकती हैं। गर्भधारण के टिप्‍स (tips to get pregnant in Hindi) के माध्यम से आप इसे विषय से संबंधित सामान्य बातों को समझ सकती हैं

गर्भधारण के लिए चिकित्सकीय जांच
आज लोग ज्यादा उम्र में विवाह‍ कर रहे हैं और कई बार अपने करियर के लिए महिलाएं जल्‍दी मां नहीं बनना चाहतीं। ऐसे में अगर आप अभी मातृत्‍व सुख प्राप्‍त करना नहीं भी करना चाहती हैं, तो भी चिकित्सकीय जांच करा लें। अगर आपको सेक्स संबंधी किसी प्रकार की बीमारी है, तो भी आपको इसका पता चल जायेगा। चिकित्सकीय जांच से आप आने वाले दिनों में होने वाली किसी सेक्स समस्या से बच सकेंगी। हो सकता है आप आज से तीन या चार साल बाद मां बनना चाहें। आप चिकित्सक से गर्भधारण के अन्‍य पहलुओं पर भी बातचीत कर सकती हैं।
ओवुलेशन पीरियड में सेक्‍स करें

हर महिला का ओवुलेशन पीरियड उसके मासिक-धर्म के अनुसार हो सकता है। लेकिन सामान्यत: मासिक-धर्म के 16वें और 12वें दिनों का समय ओवुलेशन पीरियड हो सकता है । इस समय सेक्स‍ करने से गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है। जैसे अगर आपके मासिक-धर्म  की शुरुआत 30 तारीख को होनी है तो 14 से 18 तारिख का समय ओवुलेशन का समय होगा।

स्वस्थ‍ जीवनशैली अपनाएं
स्वस्थ्य-जीवनशैली का पालन करें। खानेपीने में पर्याप्त भोजन और फल की मात्रा रखें। विटामिन की सही मात्रा लें क्‍योंकि इससे पुरुष-स्त्री दोनों की प्रजनन दर बढती है। रोजाना व्यायाम करने से भी फायदा होता है।

तनाव-मुक्त रहने का प्रयास करें
ज्‍यादातर समय तनाव में रहना भी गर्भधारण ना कर पाने का कारण हो सकता है। तनाव से कामेक्षा कम हो सकती है, और बहुत ज्‍यादा तनाव महिलाओं की मासिक धर्म की प्रक्रिया को भी रोक सकता है। एक शांत मन आपके शरीर पर अच्छा प्रभाव डालता है और आपकी गर्भधारण की सम्भावना को बढ़ता है। इसलिए जितना हो सके तनावमुक्‍त होने का प्रयास करें।

सेक्स के बाद थोड़ी देर आराम करें
सेक्स के बाद कुछ देर आप उसी अवस्था में लेटे रहे यानि खड़े न हो एवं अपनी योनी को साफ न करें ताकि आपके पति के शुक्राणु सही जगह पहुंच सकें। इसलिए सेक्स के बाद 15-20 मिनट लेटे रहना ठीक रहता है।

अंडकोष को ज्यादा हीट से बचाएं
यदि शुक्राणु ज्यादा तापमान में आ जायें तो वो मृत हो सकते हैं। इसीलिए बहुत ज्यादा गरम पानी से इस अंग को ना धोएं। वैसे आम तौर पर इतनी अधिक सावधानी लेने की ज़रुरत नहीं है पर जो लोग आग की भट्टी या किसी गरम स्थान पर देर तक काम करते हैं उन्हें सावधान रहने की ज़रुरत है।

किसी तरह का नशा ना करे
सेक्स के दौरान किसी भी प्रकार का नशा ना करें। साथ ही महिलाओं का अत्यधिक धू्म्रपान करना, मादक पदार्थों का सेवन हार्मोन का संतुलन बिगड़ सकता है, और गर्भधारण में बाधक बन सकता है।

ल्यूब्रिकेंट्स का प्रयोग न करें
योनि को ल्यूब्रिकेंट्स में प्रयोग होने वाले कुछ ज़ेल्स, तरल पदार्थ, इत्यादि का प्रयोग डाक्टर से बिना पूछे ना करें। वैसे किसी कृत्रिम ल्यूब्रिकेंट्स  का प्रयोग करने की आवश्यकता ही नहीं है, क्योंकि ओगाज़्म के दौरान शरीर खुद ही पर्याप्त मात्रा में तरल द्रव उपज करता है जो शुक्राणु और  ओवा दोनों के लिए स्वस्थ होता है।
दवाओं का प्रयोग कम से कम करें


कई दवाइयां आपकी गर्भधारण की क्षमता पर बुरा प्रभाव डाल सकती हैं। इसलिए दवाओं का उपयोग कम से कम करें। बेहतर होगा कि आप किसी भी दावा को लेने या छोड़ने से पहले डॉक्टर से सलाह ले लें। खुद अपना इलाज करना घातक हो सकता है।

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