Tuesday, June 10, 2014

11 आदतें जो हैं दुखी लोगों की पहचान

मैं दुखी आत्‍मा
कुछ लोग हमेशा दुखी रहते हैं। उनके जीवन कितने ही आयामों से ही क्‍यों न गुजरे, वे हमेशा परेशान ही रहते हैं। कोई भी हालात उन्‍हें खुश नहीं कर पाते। उनका नजरिया इतना नकारात्‍मक होता है कि वे उजले पक्ष को देख ही नहीं पाते। उन्‍हें चांद की खूबसूरती नहीं, उसमें छुपा दाग ही नजर आता है। यह उनके जीने का अंदाज बन जाता है। वे लोगों की दया और सहानुभूति चाहते हैं। उन्‍हें सहानुभूति अच्‍छी लगती है। दुखी और गमगीन करने वाला माहौल उन्‍हें ज्‍यादा भाता है। तो, आखिर ऐसे लोगों की क्‍या पहचान होती है।

1) किसी चीज का शुक्रिया अदा नहीं करते
'दुखी-आत्‍मा' टाइप लोग जीवन में शुक्रिया अदा करना नहीं जानते। उन्‍हें अपनी जिंदगी से सिर्फ शिकायत होती है। वे उन चीजों की कीमत नहीं समझते, जो जीवन ने उन्‍हें दी हैं। यदि आप उन चीजों का शुक्रिया अदा करना शुरू कर दें, जो कुदरत ने आपको बख्‍शी हैं, तो आप पाएंगे कि आपके पास बहुत कुछ है। इससे आपकी खुशी दस गुना बढ़ जाएगी और आपकी तकलीफ कम हो जाएगी। लेकिन, आप ऐसा नहीं करेंगे। ऐसा करना आपकी आदत के खिलाफ जो है। आप सोचते हैं कि अपने पास मौजूद चीजों के शुक्रिया अदा करना वक्‍त की बर्बादी है।

2) बोर होता है जीवन
दुखी लोगों के जीवन में रोमांच नहीं होता। वे काफी बोर, उबाऊ और रोमांचहीन जीवन जीते हैं। जीवन का आनंद लेने वाले लोग उनकी नजर में भौतिकतावादी होते हैं। वे न तो मजा करते हैं और न ही कोई रोमांचक काम में ही उनकी दिलचस्‍पी होती है, लेकिन इसके बावजूद बजाय कि वे खुद में बदलाव लायें, उन्‍हें अपने जीवन के ही रोमांचहीन और बोरिंग होने की शिकायत होती है। जहां आम और जिंदगी के प्‍यार करने वाले लोगों की नजर में जीवन के बारे में कोई भी अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, दुखी लोगों की जिंदगी कार्बन छाप टाइप होती है। मनोरंजन के नाम पर टीवी उनका सबसे बड़ा साथी होता है। और इसके अलावा वे कभी मैगजीन आदि से अपना मन बहला लेते हैं। लेकिन, इसके अलावा उनके जीवन में रोमांच जैसा कुछ नहीं होता।

3) वे हमेशा अतीत का महिमामण्‍डन करते हैं
हम सबको अपने पुराने दिन याद आते हैं। हम सब उन लम्‍हों को जीते हैं। लेकिन, दुखी रहने वाले लोग इतिहास का पल्‍ला छोड़ने को तैयार ही नहीं होते। वे जिंदगी में आगे बढ़ना ही नहीं चाहते। वे हमेशा क्‍या हो गया, पुराना जमाना कैसा था, क्‍या किया गया आदि पर अटके रहते हैं। उन्‍हें अपने जिंदगी में घटी बुरी बातें ही याद रहती हैं। दुखी लोग बीती बातों को याद करते हुए अपने पैदा होने के वक्‍त, स्‍थान और समय को ही कोसते रहते हैं। वे यही कहते हैं कि बचपन से उन्‍हें परेशानियां मिली हैं। उन्‍हें अपनी पसंद की चीजें कभी नहीं मिलीं।

4) अपना फायदा सर्वोपरि
जीवन में सभी सुखों का बीज दूसरों की खुशी की कामना करना है। और जीवन में सभी दुखों का मूल अपनी खुशी के बारे में सोचना है। स्‍व-केंद्रित होना दुखी लोगों की सबसे बड़ी आदत होती है। उन्‍हें अपने अलावा दुनिया में कोई दूसरा नजर ही नहीं आता। उन्‍हें बस अपनी इच्‍छाओं की पूर्ति करने की जिद होती है। फिर चाहे उसके लिए कोई भी रास्‍ता क्‍यों न अपनाना पड़े। वे अपने जैसी सोच के लोगों की संगति में ही रहना चाहते हैं। दूसरों का हक छीनने में उन्‍हें कोई बुराई नहीं लगती। उन्‍हें अपना हर काम सही लगता है।

5) पैसे का डर
अगर आप दुखी रहना चाहते हैं तो डर से गठबंधन कर लीजिए। दुखी व्‍यक्ति भले ही किसी नौकरी को कितना ही नापसंद क्‍यों न करता हो, लेकिन इसके बावजूद वह उसे छोड़ेगा नहीं। वह उस नौकरी में पिसना पसंद करेगा, लेकिन जीवन में नया करने का साहस और जोखिम नहीं जुटा पाएगा। वह पैसों का लालची होता है। पैसों की चिंता उसे बीमार बना देती है। जरा से नुकसान से उसे अवसाद हो जाता है।

6) लड़ने का बहाना
दुखी लोगों को अपनी करीबियों से लड़ने का बहाना मिल जाता है। वे अचानक ही किसी बात पर लड़ने लग जाते हैं। आमतौर पर वे किसी ऐसी बात पर झगड़ा करते हैं, जिसका उस समय कोई महत्‍व नहीं होता। वे उम्‍मीद करते हैं कि सामने वाला व्‍यक्ति दयालुता और करुणा से पेश आए और जब वह ऐसा नहीं करता, तो वे उसके खिलाफ मोर्चा खोल देते हैं। अगर सामने वाला व्‍यक्ति कभी दोबारा उस बारे में बात करे तो वे उन हालात से दूर जाना चाहेंगे और ऐसे बर्ताव करेंगे जैसेकि उन्‍हें कुछ मालूम ही न हो।

7) दूसरों पर दोष, खुद निर्दोष
ऐसे लोग दूसरों पर आरोप लगाने में माहिर होते हैं। जिंदगी की सारी खामियां और बुराइयां उन्‍हें दूसरे लोगों में नजर आती हैं। बचपन से लेकर जवानी तक की अपनी सारी नाकामयाबियों के पीछे उन्‍हें दूसरे नजर आते हैं। दूसरों पर आरोप लगाना उनके लिए जरूरी होता है। वे इससे राहत महसूस करते हैं। यह उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्‍सा बन जाता है।

8) हर समय मेरा अपमान
वे किसी भी टिप्‍पणी, राय अथवा सुझाव को गलत तरीके से लेते हैं। वे मानते हैं कि जिसने भी उनके साथ ऐसा किया है, वह वास्‍तव में उनका अपमान करना चाहता है। दूसरों की सलाह उन्‍हें खुद को नीचा दिखाने वाली लगती है। दुखी लोगों की नजर में सभी लोग उनका बुरा चाहते हैं और लोगों से कभी अच्‍छे की उम्‍मीद नहीं की जानी चाहिए।

9) वे नकारात्‍मक बनते हैं और वैसे ही रहते हैं
दुखी रहने के लिए मूल में किसी न किसी भावनात्‍मक समस्‍या का होना जरूरी है। उदाहरण के लिए यदि वे किसी चिंता, अवसाद, क्षोभ या किसी भी प्रकार की समस्‍या से परेशान हों, तो वे चाहते हैं कि यह उनकी पहचान का हिस्‍सा बन जाए। वे चाहते हैं कि हर किसी को उनके दुख के बारे में पता हो। वे इसे अपनी जिंदगी का फोकस बना लेते हैं। वे लगातार इसके बारे में बात करते हैं और जब भी मौका मिलता है, वे इस बारे में बात करते हैं। वे चाहते हैं कि उन्‍हें उदास देखकर लोग खुद ब खुद उनकी समस्‍या के बारे में समझ जाएं।

10) दूसरों के ड्रामे का हिस्‍सा हों
वे अपनी और दूसरों की जिंदगी में होने वाले सभी ड्रामे के केंद्र में रहना चाहते हैं। इसमें पारिवारिक और सामाजिक ड्रामा भी शामिल है। वे चाहते हैं कि लोग उन्‍हें याद करें, उनसे अपनी बातें साझा करें। लोग उनसे अपना दुख औ‍र चिंतायें साझी करें ताकि उस ड्रामे को अलग स्‍तर पर ले जा सकें।  हालात को अतिरंजित करना और दूसरों को अपनी दुख भरी कहानी सुनाकर सांत्‍वना देना उनकी आदत बन जाती है।

11) हमेशा बुरा सोचते हैं
जिंदगी परेशान करती है। सारी दुनिया का दर्द और दुख केवल उन्‍हें ही है। यही उनके जीवन का मूल-मंत्र होता है। आशावादी होना उनके लिए मूर्खता है और इससे उन्‍हें केवल नुकसान ही होता है। वे यही सोचते हैं कि उनकी नौकरी चली जाएगी, उनकी शादी टूट जाएगी, बच्‍चे कहना नहीं सुनेंगे और भी न जाने क्‍या-क्‍या। जीवन में उन्‍हें हर ओर नकारात्‍मकता ही नजर आती है। जो कुछ भी बुरा होगा, सबसे पहले इनके साथ होगा।
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ਧੰਨਵਾਦ ਸਾਹਿਤ: http://www.onlymyhealth.com/hindi.html

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